Wednesday, September 24, 2008

प्रीत कथन

मेरी प्रीत ने मुझसे कुछ आकर कहा
रुक रुक कर मगर कुछ तो कहा
में बड़ी देर से सुन रहा था ध्यान लगाकर
मगर जो चाहत और उम्मीद थी जगी मन में
आज ऐसा पल आएगा और सच होने का अंदेशा था
प्रीत ने मगर मुझसे कुछ और कहा

बड़ी जिल्लत उठाई थी इस दिल ने
सपने जो टूटकर बिखर गए थे
दिल के ही किसी कोने से लेकिन आवाज आयी
और मेरी प्रीत के बारे में मुझसे कहा
अब फिर सुन रहा था में ध्यान लगाकर
न कोई चाहत और उम्मीद जगी थी
दिल की सुनने से पहले मेने अपने आप से कुछ कहा
तब असल अमल आया बात पर उसकी
जो मेरी प्रीत ने मुझसे आकर कहा

कहते हैं सच नंगी आंखों से देखा जाता है
झूठा सच तब बेपर्दा होता है
जब सच में दुख आ जाता है
यूँ तो हर बार कहा था उसने चलना मेरे दोस्त संभलकर
जब ठोकर कहीं लग जाती है इन्सान तब कहीं जाकर समझ पता है

मगर में तो ठोकर खाता रहा
और प्रीत मेरा मुझसे कहता रहा
मेने सोचा चलना ही जिंदगी है। चाहे बैसाखियों पर चलता रहा
धोखा भी यार बहुत जरुरी है। इससे मन मजबूत होता जाता है
कुछ चिट्ठियां मेने भी बांची हैं इस सुनसान वीराने में
रात के घने अंधेरे में दहकते गर्म दिन के उजाले में

सच बड़ा कठोर और कड़वा होता है
बड़ी मुस्किल से मेने इस सच को सहा
सब सुनते सुनते तब मुझे ध्यान आया
के मेरे कड़वे प्रेम ने क्या आकर मुझसे कहा॥

धीरेन्द्र चौहान " देवा"