Monday, October 6, 2008

"बौल्या दादा"

"बौल्या दादा"
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पौडी खाल कु बौल्या दादा
बुध्यंदा माँ बोल्येगे.
छंदा नाती नातुनो कु
गौं गौं माँ रिडियेगे..

बुडुरी दगडी लड़ी जब निर्भाग बुड्या..
तब ता सरम नि आयी
भूखा पेट लेकी च घुम्नाओ
चार दिन बाटी कुछ नि खाई

गों का छोरु ते एक न्यु खेल ह्वेगी
हमारू यु बौल्या दादा
भागाणु च छोरु का पिछने
लेकी तें खूब लाठा बतेंडा.

शर्मसार च हुयों. और मुख लात्केकी
जब बुड्या घर वापस आयी
निर्भाग बुडुरी कु प्रेम तब उमड़ी
जब बुड्या न पतेलु भरी भात खाई

"चिर यौवन सौंदर्य.."

सौंदर्य..

तिलिस्म कहूँ या कह दूँ निगाहें उनकी.
जादुई पलकें और उनका सहारा..
हो के तुम चिर यौवन सौंदर्य.
अनोखे पलों में सजी काया है उनकी.

अधरों पे मुस्कान बिखर जाती है.
फिर जब पलकें क़यामत ढाती हैं.
खुदा का करम फिर होता है मुझ पर
मिल जाती हैं हमसे जब निगाहें उनकी..

अनायास ही एक ख़याल आता है
जब मौजूदगी उनकी महक जाती है
उन्मुक्त मन मयूर नाचने लगे जब
चेहरे पर दमके जब मुस्कान उनकी

बाखुदा वो हुश्न, वो रंग, वो परी सी क़यामत.
बड़ी गहरी और उनकी वो चमकदार आँखें.
मदहोश कर दे जो किसी भी पल में
ऐसी अब तक की असरदार मुस्कान है उनकी...
तिलिस्म कहूँ या कह दूँ निगाहें उनकी....


धीरेन्द्र चौहान "देवा"