Monday, October 6, 2008

"चिर यौवन सौंदर्य.."

सौंदर्य..

तिलिस्म कहूँ या कह दूँ निगाहें उनकी.
जादुई पलकें और उनका सहारा..
हो के तुम चिर यौवन सौंदर्य.
अनोखे पलों में सजी काया है उनकी.

अधरों पे मुस्कान बिखर जाती है.
फिर जब पलकें क़यामत ढाती हैं.
खुदा का करम फिर होता है मुझ पर
मिल जाती हैं हमसे जब निगाहें उनकी..

अनायास ही एक ख़याल आता है
जब मौजूदगी उनकी महक जाती है
उन्मुक्त मन मयूर नाचने लगे जब
चेहरे पर दमके जब मुस्कान उनकी

बाखुदा वो हुश्न, वो रंग, वो परी सी क़यामत.
बड़ी गहरी और उनकी वो चमकदार आँखें.
मदहोश कर दे जो किसी भी पल में
ऐसी अब तक की असरदार मुस्कान है उनकी...
तिलिस्म कहूँ या कह दूँ निगाहें उनकी....


धीरेन्द्र चौहान "देवा"

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