रफ़्तार की भी कुछ अलग ही बात होती है
विकास की बात आये तो
रफ़्तार "मंत्री" होती है
या तो विकास रफ़्तार से होता है
या विकास की रफ़्तार धीमी होती है
अभी कुछ दिन पहले
एक सज्जन हमसे टकराए
रफ़्तार कुछ ज्यादा थी
इसलिए क्षमा भी न कह पाए
ए गए हर दिन ये सब तो होता ही है
इस शहर की रफ़्तार भी कुछ
अजीब सी हो गयी है
गावों से पलायन रफ़्तार से हो रहा हैं
उन्ही गांवों में सूनापन
रफ़्तार से बढ़ रहा है
रफ़्तार से जंगल शहर बन रहे हैं
इंसान नमक प्राणी
रफ़्तार से नदी नालों को
गन्दगी दूषित कर रहे हैं
रफ़्तार से सड़कों पर
वाहनों की की जमात बढ़ी है
इसी जमात के चलते
हर चौराहे पर हमने
जिंदगी जीने की कहानी गढ़ी है
आज दुनिया की हर अवाम हैरान है
बढती हुई इस रफ़्तार से परेसान है
सुनाने में तो आता है के पानी कभी कहानी बन जायेगी
बिन पानी के उसी की कहानी
जानते हुए हर जिम्मेदार नागरिक आज कहाँ है.
रचनाकार.
धीरेन्द्र सिंह चौहान॥ "देवा"
Wednesday, March 4, 2009
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