Saturday, January 3, 2009

याद

तुम न जाने क्यूँ मेरे जेहन में आ जाती हो
बनकर घटा दिल आसमान पर चा जाती हो
बरस जाती हो प्यार बनकर
मेरे जलते वीराने में तुम
प्यार भरा सावन बनकर आती हो
तुम न जाने क्यों मेरे जेहन में आ जाती हो

हर बार रोकता हूँ में जज्बातों को
तुम आकर इन्हे ललकार जाती हो
सोचता हूँ दिल में ही रखूं तेरी यादों को
भुलाकर भी हर बार तुम याद आ जाती हो
तुम न जाने क्यों मेरे जेहन में आ जाती हो

सायद तुम्हे मेरे दर्द का अहसास नही
आकर मेरे सपनो में तुम मुस्करा जाती हो
कभी हल ऐ दिल तो पूछा होता
बिना कुछ कहे आकर मेरे ख्यालों में
मुझे हर बार अकेला छोड़ जाती हो

तुम न जाने क्यों मेरे जेहन में आ जाती हो...

धीरेन्द्र चौहान "देवा"