!!! परदेशी मुलुक !!!
मैं भी जब जवान होयुं।
मैन भी तब ही देखि। स्यूं का सयौं लोग भागन लाग्यां छीन किले। तब मैन भी जानी।
जीवन माँ लोग अपुडू घर छोड़ी।
परदेशी मुलुक किले छीन जायां।
अपुडू रौन्ताल्यु उत्तराखंड छोड़ी
तत्गा दूर किले छीन जयां।
जब में थें भी घर छोड़ी जान पड़ी। मिन भी तब ही देखि।
जब अपुदा घर की याद औंदी छाई, तब मिन भी जानी।
याखा नि करदू क्वे कै सी भी प्यार, सु दुलार और स्य चिंता हर कैकी
सुख दुःख माँ साथ देनु सबुकू। और ग्वोरू की फिकर और फुन्गाणु माँ पडयाल कनु हर कैकी।
जब सास छो कैकी चिंता कु और नि मिली। मिन भी तब ही देखि ।
जब नि पूछी कैन भी हाल मेरा । तब मैन भी जानी।
अब ता में भी ज्ञानवान ह्वेयुं । मिन भी अब देखि।
किले छीन लोग भागन लाग्यां अब मिन भी जानी।
Monday, August 11, 2008
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1 comment:
namaskar dhiren ji..kya khub likha h aapne..wakayi bahut badiya..
ese hi likhte rahiye..
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